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Fiction

Bevkoofi Ka Saundarya
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Bevkoofi Ka Saundarya

अनूप शुक्ल के धारदार व्यंग्य संग्रहों से सजी पुस्तक “बेवकूफ़ी का सौंदर्य” हमारी निर्मल आनंद की सोच को आगे बढाती है। हम जिन बातो को साधारण मानकर नज़र अंदाज़ कर देते है अनूप शुक्ल उनमे भी हास्य ख़ोज लेते हैं। हिंदी साहित्य में एक अच्छे व्यंग्य संग्रह की जो एक कमी लम्बे समय से है ये पुस्तक उसे पूरा करने का प्रयास अवश्य करती हैं।
125.00
Parijaat Ke Phool

Parijaat Ke Phool

कहते हैं पारिजात के फ़ूलों की ये विशेषता होती है कि वो रात में खिलते हैं और सुबह तक मुरझा कर गिर जाते हैं,और ये फूल उस वृक्ष के नीचे ना बिखर के उसकी परिधि से बाहर कुछ दूर जाके गिरते हैं।ऐसा कोई श्राप है शायद, जो पेड़ और उसके फूलों का बिखराव और अलगाव सुनिश्चित करता है।
150.00
Suraj Ki Missed Call
Suraj Ki Missed Call
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Suraj Ki Missed Call

ऋग्वेद के गायत्री-मंत्र से लेकर समकालीन कवि सूर्यभानु मिश्र की कविता 'ओ भाई सूरज' तक साहित्य में सूर्य का सुघड़-परिष्कृत मानवीकरण आपने पहले भी देखा-पढ़ा और दुहराया होगा पर सूरज के इतने संवेदी रूप,जनजीवन से उसका ऐसा राब्ता, ऐसी मूल्य-चेतना और अपनी किरणों से उसका ऐसा आत्मीय लगाव कम ही देखा होगा।

इस संकलन 'सूरज का मिस्ड कॉल' में सूरज के इतने मूड, इतनी क्रियाएं, इतनी मुद्राएं और भंगिमाएं हैं कि आप मुग्ध हो जाएंगे . यहां नदी और ताल पर चमकता सूरज है, ट्रेन और हवाई जहाज में साथ चलता और बतियाता सूरज है, कोहरे की रजाई में दुबका सूरज है, अंधेरे के खिलाफ सर्च वारंट लेकर आता मुस्तैद सूरज है, ड्यूटी कम्प्लीट करने के बाद थका-हारा सूरज है और अपनी बच्चियों यानी किरणों पर वात्सल्य छलकाता पिता सूरज है।

इस सूर्य-संवाद की भाषा शास्त्रीय नहीं, समकालीन है. बहती  हुई, बोलती हुई हिंदी . वैसी ही हिंदी ,जैसी आज-कल सूरज के तमाम 'क्लाइंट्स' की  है . यह कहना बड़ा मुश्किल है कि इस संकलन में सूरज अनूप शुक्ल की आंख से दुनिया देख रहा है या अनूप शुक्ल सूरज की आंख से। यह सूरज दरअसल लेखक का आत्मरूप है।

  • प्रियंकर पालीवाल
149.00
मुझे जुगनुओं के देश जाना है
मुझे जुगनुओं के देश जाना है

मुझे जुगनुओं के देश जाना है

सबाहत आफ़रीन की कहानियों में स्त्री पात्र के भीतर छटपटाहट है, बेचैनी है। उनकी कहानियों के किरदार बोसीदा रीति रवाजों को मानने से इनकार करते हैं। उनकी कहानियों का मन समाज के बनाये बन्धनों में जकड़ा हुआ ज़रूर है मगर वो किसी हाल में उम्मीद नहीं छोड़तीं। उनकी आँखों में उम्मीद के दिए जल रहे हैं, एक ख़ाब मतवातिर उनके ज़ेहन में चलता रहता है जो उन्हें यक़ीन दिलाता है कि आज नहीं तो कल हालात सुधरेंगे। कभी तो वो रात आएगी जब मुठ्ठियों में बंद जुगनू आज़ाद होंगे और अँधेरी फ़ज़ा फिर से रोशन हो उठेगी।
225.00