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दिवाकर आचार्य के व्यंग्य संग्रह “विद्रूप विदूषक” को आज के समय की पुस्तक कहा जा सकता है. सामाजिक, राजनैतिक और नैतिक विद्रूपताओं की अपने व्यंग्य के माध्यम से धज्जियाँ उड़ाते दिवाकर भाषायी दृष्टि से भी अपने लेखन को उत्कृष्ट बनाते है। इनके लेखन में चर्चित स्लैंग तो मिलेंगे ही लेकिन साथ ही साथ ठेठ देसज शब्दों की भरमार भी पढ़ते हुए आपको रोमांचित करती है।

लेखक द्वारा हस्ताक्षरित प्रति मंगवाने के लिए प्री-ऑर्डर करे।

संभावित डिलीवरी – 25-30 मई।

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दिवाकर आचार्य के व्यंग्य संग्रह “विद्रूप विदूषक” को आज के समय की पुस्तक कहा जा सकता है. सामाजिक, राजनैतिक और नैतिक विद्रूपताओं की अपने व्यंग्य के माध्यम से धज्जियाँ उड़ाते दिवाकर भाषायी दृष्टि से भी अपने लेखन को उत्कृष्ट बनाते है। इनके लेखन में चर्चित स्लैंग तो मिलेंगे ही लेकिन साथ ही साथ ठेठ देसज शब्दों की भरमार भी पढ़ते हुए आपको रोमांचित करती है।

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