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मुझे जुगनुओं के देश जाना है

225.00

सबाहत आफ़रीन की कहानियों में स्त्री पात्र के भीतर छटपटाहट है, बेचैनी है। उनकी कहानियों के किरदार बोसीदा रीति रवाजों को मानने से इनकार करते हैं। उनकी कहानियों का मन समाज के बनाये बन्धनों में जकड़ा हुआ ज़रूर है मगर वो किसी हाल में उम्मीद नहीं छोड़तीं। उनकी आँखों में उम्मीद के दिए जल रहे हैं, एक ख़ाब मतवातिर उनके ज़ेहन में चलता रहता है जो उन्हें यक़ीन दिलाता है कि आज नहीं तो कल हालात सुधरेंगे। कभी तो वो रात आएगी जब मुठ्ठियों में बंद जुगनू आज़ाद होंगे और अँधेरी फ़ज़ा फिर से रोशन हो उठेगी।

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Rujhaan Publications 9392028040 January 1, 2022 Hindi 92 pages

Happy Readers

Editorial Reviews

एक दौर था जब हम इस्मत चुग़ताई, कृशन चंदर, बेदी, अब्बास, ऐनी आपा, कृष्णा सोबती जैसे लेखकों की कहानियों के तिलिस्म में गुम रहते थे। धीरे धीरे वो दौर चला गया। कहानियां तो उनके बाद भी बेहतरीन लिखी जाती हैं लेकिन पता नहीं क्यों वैसा तिलिस्म नज़र नहीं आता। सबाहत जी ने उस दौर के फिर से लौटने की आहट दी है और ये कोई छोटी बात नहीं। देर याद रह जाने वाले क़िरदार और उनकी कहानियों कहना बच्चों का खेल नहीं - मेरी बात पर यकीन नहीं तो आप इस किताब को पढ़ कर देखें ।

Neeraj Goswamy

Author

सबाहत आफ़रीन यानी कि एक शबनमी लहजा, नायाब दास्तानगोई की सलाहियत, बातें ऐसी लच्छेदार कि पढ़ते चले जाइये और मन न भरे और उस पर औरत के भीतर की वो सारी परत-दर-परत का बयान, जिन्हें शायद ही किसीने इतनी ख़ूबसूरती से कभी खोला हो ! उनकी कहानियों में स्त्री अपनी तमाम बेड़ियों में बंधी हुई भी सपने देखने का हौसला नहीं छोड़ती। उसकी उम्मीद का चिराग़ किसी आँधी से नहीं बुझता, पुराने सड़े-गले रीति-रिवाजों की क़ैद से अपनी हर हसरत को आज़ाद कर वो जुगनुओं के देश में जाने का ख़्वाब बुनती है। सबाहत आफ़रीन को पढ़ते हुए बारहा इस्मत आपा याद आईं .... वही बेबाकी, वही तेवर, वही कहन की कला, वही अंदाज़ की ख़ूबसूरती। बेहद उम्दा किताब।

Archana Pant

अपने अंतर्मन के अनछुए भावों की बेकरारी और साथ में समाज के तथाकथित अकाट्य रीति - रिवाजों के बंधन होते हुए भी अपनी आशा बनाये रखती इस कहानी संग्रह की कहानियां कुछ को अपनी सी प्रतीत हो सकती हैं , कुछ को नागवार भी गुजर सकती हैं। इतनी बेबाकी से अपने समाज की सभी पुरानी विचारधारा को तोड़ने की कोशिश करती सबाहत आफ़रीन जी की लेखनी दिवाकर की भांति अपनी प्रखरता ऐसे ही फैलाती रहे

Vedant

Best book five star rating please read Some of the best reviews are the product of a critic who brings personal experience into their analysis of the book at hand.

Azeem Siddiqui

Authors

Meet the Author

Sabahat Afreen

कभी तो वो रात आएगी जब मुठ्ठियों में बंद जुगनू आज़ाद होंगे और अँधेरी फ़ज़ा फिर से रोशन हो उठेगी।
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मुझे जुगनुओं के देश जाना है
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Description

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सबाहत आफ़रीन की कहानियों में स्त्री पात्र के भीतर छटपटाहट है, बेचैनी है। उनकी कहानियों के किरदार बोसीदा रीति रवाजों को मानने से इनकार करते हैं। उनकी कहानियों का मन समाज के बनाये बन्धनों में जकड़ा हुआ ज़रूर है मगर वो किसी हाल में उम्मीद नहीं छोड़तीं। उनकी आँखों में उम्मीद के दिए जल रहे हैं, एक ख़ाब मतवातिर उनके ज़ेहन में चलता रहता है जो उन्हें यक़ीन दिलाता है कि आज नहीं तो कल हालात सुधरेंगे। कभी तो वो रात आएगी जब मुठ्ठियों में बंद जुगनू आज़ाद होंगे और अँधेरी फ़ज़ा फिर से रोशन हो उठेगी।

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