Suraj Ki Missed Call
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ऋग्वेद के गायत्री-मंत्र से लेकर समकालीन कवि सूर्यभानु मिश्र की कविता ‘ओ भाई सूरज’ तक साहित्य में सूर्य का सुघड़-परिष्कृत मानवीकरण आपने पहले भी देखा-पढ़ा और दुहराया होगा पर सूरज के इतने संवेदी रूप,जनजीवन से उसका ऐसा राब्ता, ऐसी मूल्य-चेतना और अपनी किरणों से उसका ऐसा आत्मीय लगाव कम ही देखा होगा।
इस संकलन ‘सूरज का मिस्ड कॉल’ में सूरज के इतने मूड, इतनी क्रियाएं, इतनी मुद्राएं और भंगिमाएं हैं कि आप मुग्ध हो जाएंगे . यहां नदी और ताल पर चमकता सूरज है, ट्रेन और हवाई जहाज में साथ चलता और बतियाता सूरज है, कोहरे की रजाई में दुबका सूरज है, अंधेरे के खिलाफ सर्च वारंट लेकर आता मुस्तैद सूरज है, ड्यूटी कम्प्लीट करने के बाद थका-हारा सूरज है और अपनी बच्चियों यानी किरणों पर वात्सल्य छलकाता पिता सूरज है।
इस सूर्य-संवाद की भाषा शास्त्रीय नहीं, समकालीन है. बहती हुई, बोलती हुई हिंदी . वैसी ही हिंदी ,जैसी आज-कल सूरज के तमाम ‘क्लाइंट्स’ की है . यह कहना बड़ा मुश्किल है कि इस संकलन में सूरज अनूप शुक्ल की आंख से दुनिया देख रहा है या अनूप शुक्ल सूरज की आंख से। यह सूरज दरअसल लेखक का आत्मरूप है।
- प्रियंकर पालीवाल
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