जूते की ईएमआई – आलोक पुराणिक
Original price was: ₹150.00.₹77.00Current price is: ₹77.00.
एक से बढ़कर एक जानदार च शानदार चुटीले व्यंग्यों से सज़ा संग्रह “जूते की ईएमआई” अब उपलब्ध है प्री-बुकिंग के लिए।
लेखक – आलोक पुराणिक
संभावित डिलिवरी – 3 से 5 दिन
आलोक को व्यंग्य के सौंदर्यशास्त्र और उसके व्याकरण की इतनी गहरी, नैसर्गिक सी समझ है कि उनको पढकर, और व्यंग्य लेखन को लेकर उनकी इस जिद और बेचैनी से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। स्वयं के लिखे पर उनका अगाध भरोसा, और निरंतर कुछ नया करने की अहर्निश बेचैनी ही उनको सारे समकालीनों से अलग करती है। उनकी यही बेचैनी, और नये प्रयोग करने का साहस मुझे उनका प्रशंसक बनाता है।
उन्होंने लंबी रचनाएं भी लिखी हैं, कथात्मक व्यंग्य भी लिखे हैं और व्यंग्य में पगे निबंध भी खूब लिखे हैं। पर उनकी बदनामी और ख्याति उन एकदम छोटी, एकदम तात्कालिक घटनाओं पर तात्कालिक घटनाओं पर तात्कालिक व्यंग्यात्मक, आशु कवि की तरह, तुरंत रचे अर्थपूर्ण वनलाइनर अर्थात जुमलों के लिए है। मेरा मानना है कि जुमलेबाजी करना बेहद प्रतिभा मांगता है। आसान काम नहीं होता यह, जैसा कि पहली नजर में किसी को लगता होगा। जब तक व्यंग्य की कहन पर आपकी वैसी पकड़ न हो जैसी आलोक की है, तब तक आप मात्र एक दो वाक्य में वह चमत्कार पैदा नहीं कर सकते जो व्यंग्य भी हो, और जिसमें मात्र एक पंक्ति में ही कोई बहुत बड़ी बात भी कह दी गई हो। इसके लिये आपको समकालीन समाज, राजनीति, अर्थशास्त्र, बाजार और सारी दुनिया पर गहरी पकड़ तो चाहिये ही, साथ में व्यंग्य रचने का अद्भुत कौशल भी चाहिये।
डा. ज्ञान चतुर्वेदी, वरिष्ठ व्यंग्यकार और उपन्यासकार,
Description
एक से बढ़कर एक जानदार च शानदार चुटीले व्यंग्यों से सज़ा संग्रह “जूते की ईएमआई” अब उपलब्ध है प्री-बुकिंग के लिए।
लेखक – आलोक पुराणिक
आलोक को व्यंग्य के सौंदर्यशास्त्र और उसके व्याकरण की इतनी गहरी, नैसर्गिक सी समझ है कि उनको पढकर, और व्यंग्य लेखन को लेकर उनकी इस जिद और बेचैनी से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। स्वयं के लिखे पर उनका अगाध भरोसा, और निरंतर कुछ नया करने की अहर्निश बेचैनी ही उनको सारे समकालीनों से अलग करती है। उनकी यही बेचैनी, और नये प्रयोग करने का साहस मुझे उनका प्रशंसक बनाता है।
उन्होंने लंबी रचनाएं भी लिखी हैं, कथात्मक व्यंग्य भी लिखे हैं और व्यंग्य में पगे निबंध भी खूब लिखे हैं। पर उनकी बदनामी और ख्याति उन एकदम छोटी, एकदम तात्कालिक घटनाओं पर तात्कालिक घटनाओं पर तात्कालिक व्यंग्यात्मक, आशु कवि की तरह, तुरंत रचे अर्थपूर्ण वनलाइनर अर्थात जुमलों के लिए है। मेरा मानना है कि जुमलेबाजी करना बेहद प्रतिभा मांगता है। आसान काम नहीं होता यह, जैसा कि पहली नजर में किसी को लगता होगा। जब तक व्यंग्य की कहन पर आपकी वैसी पकड़ न हो जैसी आलोक की है, तब तक आप मात्र एक दो वाक्य में वह चमत्कार पैदा नहीं कर सकते जो व्यंग्य भी हो, और जिसमें मात्र एक पंक्ति में ही कोई बहुत बड़ी बात भी कह दी गई हो। इसके लिये आपको समकालीन समाज, राजनीति, अर्थशास्त्र, बाजार और सारी दुनिया पर गहरी पकड़ तो चाहिये ही, साथ में व्यंग्य रचने का अद्भुत कौशल भी चाहिये।
डा. ज्ञान चतुर्वेदी, वरिष्ठ व्यंग्यकार और उपन्यासकार,
Reviews
There are no reviews yet.