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दीपक मशाल की लघुकथाएं छोटे-छोटे जीवनानुभवों की झांकियां हैं। वह बुंदेलखंड की ज़मीन से आते हैं और उसके दुःख-दर्द आज तक अपने साथ लिए चलते हैं। एक छोटे गाँव-कसबे से निकलकर देश-विदेश की यात्राएं करते हुए दीपक ने एक बड़ी दुनिया देखी है, या कहें कि न केवल देखी है बल्कि उससे मिले अनुभवों को आत्मसात किया है. दीपक की इन लघुकथाओं में कोई विस्फोटक या चौंकाने वाला कथ्य नहीं है बल्कि रोज़मर्रा के जीवन में मानवीय संबंधों, उनके भीतर की कशमकश, बदलते समय और सोच के बीच का विद्रूप यहाँ बहुत सहजता से सामने आता है। यहाँ लेखक देश, दुनिया या समाज से ही सवाल नहीं पूछता है बल्कि वह ख़ुद अपने आपसे या पाठक से सवाल करता है। -विवेक मिश्र
लघुकथा संग्रह
प्रथम संस्करण
पेपरबैक
संभावित डिलीवरी – 3-5 दिन
Description
दीपक मशाल की लघुकथाएँ युवा लेखकों के लिए आदर्श हैं। विषय वैविध्य के कारण भी और प्रस्तुति की नव्यता के कारण भी। ये लघुकथाएँ इतना तो आश्वस्त करती हैं कि आने वाले समय में लेखक और अधिक नए विषयों का सन्धान करेगा और शिल्प के क्षेत्र में भी नए द्वार का उद्घाटन करेगा। – रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
विख्यात कवि-आलोचक क्रिस्टोफ़र काडवेल ने कहा था कि कलाएं समाज की कोख से उसी तरह जन्म लेती हैं, जिस तरह सीप के गर्भ से मोती पैदा होता है। दीपक मशाल की इन कथाओं की जड़ें भी समय और समाज या प्रदत्त दिक् और काल में उपस्थित जीवन के असंख्य मार्मिक, विडंबनाओं से संपृक्त, यंत्रणा और उल्लास, दुःख और सुख, जय और पराजय, सृजन और विध्वंस के अनगिनत प्रसंगों का विवरण देतीं, अँधेरे-उजाले के देखे-अनदेखे जीवन-अनुभवों में गहराई से धंसी हुई कहानियां हैं। – उदय प्रकाश