Rs.150.00

लेखक – अनूप शुक्ल

पृष्ट – 156

संस्करण – प्रथम

सम्भावित डिलीवरी – 4-5 दिन

दुनिया तमाशा है यह कहने के लिए दार्शनिक औऱ फुरसतिया और दोनों एक साथ होना बहुत जरुरी होता है। अनूप शुक्लजी दोनों एक साथ हैं-दार्शनिक औऱ फुरसतिये भी। सिर्फ दार्शनिक होने से काम ना चलता, सौ सौ जूते खाये, तमाशा घुसके देखे-वाली प्रतिबद्धता आवश्यक है। दुनिया कई तरह की है। हरेक की अपनी दुनिया है। दफ्तर से घर, घऱ से बाजार, बाजार कभी लोकल बाजार, कभी महंगा माल, बच्चों जैसी उत्सुकता से दुनिया को देखने का अलग आनंद है, अलग दुख भी है। निस्पृह होकर देखो, तो बंदा दर्शन की ओर जा सकता है। अनूप शुक्लजी एक साथ आवारा, दार्शनिक और समाजसेवी की भूमिका में घूमते रहते हैं। कुल मिलाकर वह ऐसे व्यक्तित्व हैं, जो हर तमाशे को पूरी संजीदगी से वक्त देकर देखते हैं, हालांकि उनके पास वक्त होता नहीं है। पर ऐसी नावक्ती में भी पूरी गंभीरता से आवारगी के लिए वक्त निकालना यह दर्शाता है कि वह अगर कुछ जिम्मेदारियों से बंध ना गये होते, तो मार्को पोलो या मेगस्थनीज टाइप ग्लोबल घुमक्कड़ वृत्तांतकार बन सकते थे।

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Description

लेखक – अनूप शुक्ल

पृष्ट – 156

संस्करण – प्रथम

सम्भावित डिलीवरी – 4-5 दिन

दुनिया तमाशा है यह कहने के लिए दार्शनिक औऱ फुरसतिया और दोनों एक साथ होना बहुत जरुरी होता है। अनूप शुक्लजी दोनों एक साथ हैं-दार्शनिक औऱ फुरसतिये भी। सिर्फ दार्शनिक होने से काम ना चलता, सौ सौ जूते खाये, तमाशा घुसके देखे-वाली प्रतिबद्धता आवश्यक है। दुनिया कई तरह की है। हरेक की अपनी दुनिया है। दफ्तर से घर, घऱ से बाजार, बाजार कभी लोकल बाजार, कभी महंगा माल, बच्चों जैसी उत्सुकता से दुनिया को देखने का अलग आनंद है, अलग दुख भी है। निस्पृह होकर देखो, तो बंदा दर्शन की ओर जा सकता है। अनूप शुक्लजी एक साथ आवारा, दार्शनिक और समाजसेवी की भूमिका में घूमते रहते हैं। कुल मिलाकर वह ऐसे व्यक्तित्व हैं, जो हर तमाशे को पूरी संजीदगी से वक्त देकर देखते हैं, हालांकि उनके पास वक्त होता नहीं है। पर ऐसी नावक्ती में भी पूरी गंभीरता से आवारगी के लिए वक्त निकालना यह दर्शाता है कि वह अगर कुछ जिम्मेदारियों से बंध ना गये होते, तो मार्को पोलो या मेगस्थनीज टाइप ग्लोबल घुमक्कड़ वृत्तांतकार बन सकते थे।

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